शिव नाम की धून लोगों को नई ऊर्जा प्रदान करती है। लगता है कि ताकत दोगुनी हो गई। भगवान शंकर की बारात में शिव भक्त शामिल हुए थे। उनका आवरण कुछ भी हो, लेकिन आत्मा पवित्र थी। मुंबई में शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने सेना की छवि खराब कर दी। वह सत्य के साथ चल कर उसके साथ छल कर रहे हैं। धर्म के लिए लड़ना ठीक है। मगर, उसकी आड़ में हित को सिद्ध करने को क्या कहेगें। मौलिकता के सिद्धांत पर चलने के लिए कर्म को सार्थक बनाना पड़ता है। आज के युग में सबकुछ उलटापुलटा है। शिव सेना के नाम का सहारा लेकर काम रावण का हो रहा है। लोग चोला ओड़कर देश में आतंक मचा रहे हैं। हमें जानना है कि शिवजी की सेना क्या है। मुंबई की सेना को कौन सी सेना कहे, यह समझ से परे है। इसका उत्तर कठिन जरूर है, लेकिन लोगों समझ में आने लगा होगा। सब कुछ मालूम होने के

मुंबई की शिवसेना अब रण सेना बन गई है। देश के हित के लिए रण में उतरना ठीक है। मगर, देश के विरोध में उतराने वाला देशद्रोही कहता है। आज जिन कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है वह देशद्रोही की श्रेणी में आते हैं। मुंबई की राजनीति सबके समझ में आती है। क्या हो रहा है, लक्ष्य क्या है, किसके लिए हो रहा है, किसके इसारे पर किया जा रहा है। सब जानते हैं, यह बात। फिर भी आंखों पर काली पट्टी बांधकर अंधे रास्ते पर चले जा रहे हैं। हम पढ़े-लिखे वर्ग से तालुक रखते हैं। समझदार के लिए इसारा काफी है। मुंबई नगरी रण में तबदील हो गई। बार-बार विरोध के तीर छोड़े जाते हैं। आखिर मकसद क्या है। कभी फिल्म, बयानबाजी और कई अनकही बातों को आधार बनाकर शिवसेना के कार्यकर्ता मारपीट, तोड़फोड और उग्र प्रदर्शन कर मीडिया में जरूर आते हैं। यह दिखाना और प्रकाशित करना प्रतिस्पर्धा के युग में मजबूरी है। मगर, आत्मा खरीदने की औकात किसी की नहीं। कवरेज के साथ मीडिया लोगों को सच से अवगत भी कराती है। यह सब यूं ही चलता रहेगा। मगर, फैसला किसे करना है। उसे नहीं पता। वह अनभिज्ञ है। राजनीति करो, हितों को दूर रखकर। मुंबई में बिलकुल उलटा हो रहा है। जीतना-हारना लगा रहता है। सत्य के लिए हार भी स्वीकार है। किसी शायर ने कहा कि हमारी फितरत में नहीं है हारना, मगर कमबख्त मजबूरी बन गई है। जीतो और देश को दिखाओं के हम शिवसैनिक है, हम भारतीय है, हम देशप्रेमी है, हम देश हितेषी हैं। सब बताओं, लेकिन ऐसा काम नहीं करो जिससे देश की शांति भंग होती है। बात-बात में सेना की छवि खराब करना। यह किसके हित में है। शिवसेना का वर्जस्व सर्वाेपरी है। उसे कायम रखना कार्यकर्ता का दायित्व है। देश हित के लिए मर जाना भी कम है। सिद्धांतों का पालन करना ही शिवसेना कार्यकर्ता का दायित्व है। राजनीतिक गलियारों से होकर गुजरना, लेकिन वहां दुकानदारी नहीं करना। कहने का मकसद है कि राजनीति भी करो, लेकिन देश के हित में।
मौसम आ गया है देश पर मरने का
ऊर्जा देने वाला महरवान है तुझ पर
...उसे फिजूल खर्च मत करना।
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