Monday, February 08, 2010

बयानबाजी बनी ताकत

मनोज राठौर
झू किसी सही काम के लिए बोला जाए तो उसे माफी मिल जाती है। मगर भारत की बिड़वना है कि राजनीतिक दल अपने हित के लिए झूठ बोलते हैं। उन्हें न जनता से मतलब और न ही देश से। बयान से लोगों का दिल जीतने वाले नेता हमेशा छल करते हैं। धर्म, समाज, भाईचारा, एकता, आतंकवाद, नकस्लवाद या फिर विभिन्न विषयों पर बोलने पर नेताओं को महारथ हासिल है। मंच पर आने के बाद उनकी स्थिति कुछ ऐसी हो जाती है, जैसे शंक में हवा मारी और बज पड़ा।
हम सभी लोगों को पता है कि पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन लश्कर एवं हिजबुल भारत में घुसपैठ की फिराक में रहता है, लेकिन सुरक्षा का कवज बन बैठे नेताओं का एक ही जबाव होता है। वह कहते हैं कि भारत में आतंकवादी हमले करने में लश्कर-ए-तय्यबा, हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी संगठनों का हाथ है, जो कश्मीर के रास्ते हिन्दुस्तान में प्रवेश कर रहे हैं। उन्हें मौका मिला और चालू हो गए। वह लोगों को बताना चाहते हैं कि आतंवादी संगठन साजिश रच रहा है। हम भी चुप नहीं। पूरी तैयारी कर ली है। आने दो उन्हें देख लेगें। हर बार एजेंसी ने सरकार को चेताया है। उन्हें सुरक्षा के व्यापक इंतजाम करने के संकेत दिए। हिम्मत देखो, इस पर जिम्मेदार नेताजी पलड़ा नहीं छाड़ते। वह शान से बयानबाजी कर लोगों को भ्रमित करते हैं। उनके पास वोटर बढ़ाने का इससे बड़ा मौका नहीं होता। मंच पर पहुंचकर ऐसे शुरू हो जाते हैं कि मानों कोई पुराना गाना लगा दिया हो। मीडिया की वाइट में भी निष्कर्ष निकलकर सामने आता है कि आतंकवादी मामले में सख्ती से निपटने की तैयारी कर ली है, जल्द ही देश से आतंकवाद को सामाप्त किया जाएगा। आज के लोग समझदार है, उन्हें पता की नेताओं के भाषण में अपना समय खराब करना है। वह भाषण सुनने के लिए रूकते तक नहीं। दूसरी ओर ऐसे कथित नेताओं के भाषणबाजी में भाड़े की जनता एकत्रित की जाती है। प्रत्येक चुनाव, बड़े-बड़े समारोह में अकसद गांव से लोगों को लाया जाता है। कार्यकर्ता खाने से पीने तक की व्यवस्था करते हैं। अब हमे समझना है कि आखिर कोई चाहता क्या है? कह सकते हैं, हम अंधे नहीं। हमारी दो आखं और कान है। सब सुनते है। बंद करो बयानबाजी। सही मार्ग पर चले, तो ताकत हम देगें।

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