Saturday, October 30, 2010

तुम बोलो न बोलो हम मानते हैं

मनोज राठौर
तेरा इरादा क्या है। हमे मालूम है। तू कुछ भी बाते करे। हमे समझाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भारत का हर नागरिक समझदार है। इस वाक्य को पाकिस्तान को समर्पित करना स्वाभिक है। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने लंदन की मीडिया को मर्दानगी वाला बयान दिया है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में लड़ाई के लिए पाकिस्तान ने आतंकवादी संगठन तैयार किए और उन्हें कश्मीर पर फतेह हासिल करने की ट्रैनिंग भी दी। इतना ही नहीं मुर्शरफ ने इशारों ही इशारों में राजनीति में आने की इच्छा भी जाहिर कर दी।
यह बात दूसरी है कि पाकिस्तान में जाना उनके लिए मौत के मुंह में जाने से कम नहीं है, क्योंकि वहां उनकी हत्या के लिए कोई ईनाम घोषित कर देता है, तो कोई उनको बम का हार पहनाने की तैयारी में है। उनका आने का इंतजार केवल एक विशेष वर्ग को हैं, जो उन्हें पसंद करते हैं। लेकिन अब पाकिस्तान की तस्वीर बदल गई है। लंदन में रहकर अपने ही मूल्क को आतंकवाद की धारा में लाने की बात कह देना किसी को अच्छा नहीं लगा। यह उनकी गलतफेमी है कि इस बयान से उनकी राजनीति पक्ष मजबूत होगा। यह मुगालता उनकी मौत का कारण भी बन सकती है। जब तक अंगे्रज का साया उन पर है, तब तक उनका कोई बाल भी वाका नहीं कर सकता है। मूल्क लौटने से पहले ही कई गिद्धों की उन पर निगाहें है, जो उनके कार्यकाल के समय का हिसाब अदा करना चाहते हैं।
यह स्थिति इसलिए निर्मित हो गई है, क्योंकि उनकी गैर मौजूदगी में विपक्ष ने उनके खिलाफ मौत का मोर्चा खोल दिया है। यह बात, तो उनके आने वाले कल ही है, लेकिन वर्तमान में इस तरह की बयानबाजी उन्हें शोभा नहीं देती। मुशर्रफ भी यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि उनका बयान घर के अंदर का नहीं है, यह बाहर के दवाब का है, जो वह इन दिनों लंदन में झेल रहे हैं। इन दिनों मुशर्रफ लंदन की खुली वादियों में कैद की जिंदगी गुजर कर रहे हैं। वह पाकिस्तान में आने के लिए पिंजरे में कैद पक्षी की तरह फड़फड़ा रहे हैं। इधर, मुल्क से निकालने के बाद उनकी गद्दी का गिद्धों ने बुरी तरह नौंच दिया है और उनके लिए पाकिस्तान समेत राजनीति में आने के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। इतना सब कुछ झेलने वाले पाकिस्तान ने लंदन की मीडिया के सामने सच तो बोलने की हिम्मत की। मुशर्रफ को यह भी अच्छी तरह से पता है कि भारत को पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों के बारे में पता है और सबूत भी हैं। अब स्थिति है कि भारत को जातने की जरूरत नहीं है कि पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ है। भारत भी जनता जानती है, कि आतंकवाद की शुरूवात कहां से होती है, क्यों होती है और कौन करवाता है। इसके बावजूद मुशर्रफ लंदन में बैठकर आखिर क्या साबित करना चाहते हैं। यह भारत के लिए उनकी हमदर्दी तो नहीं या फिर लंदन सरकार का दबाव।
उनका बयान क्या हमें यह बताना चाहता है कि पाकिस्तान आतंकवादी देश है, या फिर भारत पाकिस्तान को जानता नहीं है, या उनका बयान भारत के लिए षड्यंत्र है। जो भी बात हो मुशर्रफ की, भारत विश्वास करने वाला नहीं है। क्योंकि उसे मुशर्रफ और पाकिस्तान की आदत पता है, जो गले लग कर गोली मारने से भी नहीं चुकते। पाकिस्तान के लोगों के विचार अलग-अलग हैं। मगर, इरादा एक है, जो हम समझते हैं और जानते भी हैं।
सतर्क हैं हम
बेसतर्क हो, तुम

मत दिखाना, आंख

हमारे भी नाखुन बड़े हो गए हैं....

Sunday, September 19, 2010

घर की छत, तो देखो...

मनोज राठौर
अयोध्या मामले को लेकर हर बार हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोगों में तनाव की स्थिति बन जाती है। यह विवाद क्यों पैदा होता है। समझ में सबको आता है, लेकिन कोई समझना नहीं चाहता। अयोध्या में मंदिर और मस्जिद बनाने को लेकर न खत्म होने वाला संघर्ष जारी है। कहते हैं कि घर की छत से पानी चुगता है और लोग मंदिर-मस्जिद बनाने के लिए खून बहाने को तैयार हैं। यह विवाद छोड़कर लोग अपने घरों की छत सुधार ले और वहीं पर एक मंदिर या फिर मस्जिद बनाए और जीवनभर पूजा व नमाज पड़े। मगर, ऐसा करने में सबको परहेज है, सभी अयोध्या में मंदिर और मस्जिद बनाना के सपने देख रहे हैं। आज देश की स्थिति से सभी लोग वाकिफ हैं। कहीं भूखमरी, तो कहीं पानी की कमी से जनता मर रही है। कहीं नक्सलवाद, तो कहीं आतंकवाद देश को कच्चा खाए जा रहा है। लेकिन लोगों को इसकी परवाह कहां है? वे सिर्फ खुले आसमान के नीचे जिंदगी गुजर-बसर कर खून के तालाब में डूबकी लगाना चाहते हैं। इस बहाने राजनीति दल अपना उल्लू सीधा कर लेगें, लेकिन जनता क्या होगा? मरने वाले को एक लाख और घायल को 50 हजार रुपए का मुहावजा मिलने के बाद मामला शांत जरूर हो जाएगा और जनता फिर पुराने ढर्रे पर चलने लगेगी। मगर, क्या यह विवाद खत्म हो पाएगा। दिलों से नफरत निकालकर यदि लोग चाहे, तो रास्ता निकाल सकते हैं। यह रास्ता भाई-चारे के साथ लोगों में एक नई ऊर्जा प्रदान करेगा। मरने-मारने की नौवत क्यों आए? समझदार के लिए इशारा काफी है। इसके बाबजूद लोग आंखो पर पटी बांधकर अंगारों को फूल समझकर उस पर चले जा रहे हैं। कभी न कभी कोर्ट अपना फैसला सुनाएगी। उसे क्या पता कि कौन मुस्लिम है और कौन हिंदू।
अपनी सोच बदलदे प्यारे
राह वही जो सबकों भाए
समझ-बूझकर कदम उठाना
नहीं, तो....
यह पूरा घटनाक्रम
24 सितम्बर 2010 मालिकाना हक पर फैसला दिया जाएगा।2010- रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई पूरी।2009- संसद के दोनों सदनों में लिब्रहान आयोग की रपट पेश। अटल बिहारी वाजपेयी और मीडिया को दोषी ठहराया। 2009-उत्तरप्रदेश सरकार ने एक हलफÞनामे में स्वीकार किया कि अयोध्या विवाद से जुड़ी 23 महत्वपूर्ण फाइलें सचिवालय से गायब हो गई हैं।2009- प्रधानमंत्री को 17 वर्षों के बाद लिब्रहान आयोग ने जांच रिपोर्ट सौंपी। आयोग बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की जांच के लिए बनाया गया था।2005-लालकृष्ण आडवाणी 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में रायबरेली की अदालत में पेश हुए।अदालत ने आडवाणी पर आरोप तय किए।2004-आडवाणी ने अयोध्या में अस्थायी राममंदिर में पूजा की और कहा कि मंदिर का निर्माण जÞरूर किया जाएगा।2003-इलाहाबाद हाइकोर्ट के निर्देश पर पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की खुदाई की और कहा कि मंदिर से मिलते अवशेष मिले हैं।2003-केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित स्थल पर पूजापाठ की अनुमति देने का अनुरोध किया जिसे ठुकरा दिया गया।2003- विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर की हकीकत पता लगाने के लिए रेडियो तरंगों का प्रयोग किया गया। पर निष्कर्ष नहीं निकला।2002-सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या पर अपना निर्णय देते हुए कहाकि यथास्थिति बरकÞरार रखी जाएगी। शिलापूजन नहीं होगी।2002- प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए अयोध्या समिति का गठन की। 2001-राम मंदिर निर्माण जरूर बनाएंगे। विश्व हिंदू परिषद ने इस संकल्प को एक बार फिर दोहराया।1998-प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने गठबंधन सरकार बनाई।1992-6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया। सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसमें 2000 से अधिक लोग मारे गए।1989- विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल के नजÞदीक राम मंदिर की नींव रखी।1986- बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन। फैजाबाद सेशन कोर्ट ने विवादित मस्जिद के दरवाजÞे पर से ताला खोलने का आदेश दिया। 1984- विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में एक समिति का गठन। जिसका मुख्य उद्देश्य राम जन्मभूमि को मुक्त करना था। 1949- दोनों पक्षों ने अदालत में मुकदमा दायर किया। सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित कर दिया और ताला लगा दिया।1859- इस विवाद को सुलझाने के लिए तत्कालीन शासक ने विवादित जगह को चारों तरफ से घेर दिया। अब मुसलमान विवादित परिसर के भीतर इबादत और हिन्दू बाहर प्रार्थना करने लगे।1853- यह वह वर्ष था जब अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद का मुद्दा बना। और पहली बार इस स्थल के पास सांप्रदायिक दंगे हुए।1528- हिन्दूओं के आराध्य देवता भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर मस्जिद बनवाई गई। इसे मुगÞल सम्राट बाबर ने बनवाया था।

Monday, April 05, 2010

टेनिस गेंद और बल्ले का मिलन कब?













मनोज राठौर
टेनिस गेंद और बल्ले की प्रेम कहानी विवादों में आ गई है। कोई कहता है कि इस बल्ले पर मेरा नाम है, जिसके साथ कई टेस्ट और वनडे मैच खेले हैं। कोई राग अलाप रहा है कि इस बल्ले पर सिर्फ मेरा अधिकार है। अब मामला अदालत के द्वार पर पहुंचा गया है। प्यार करने वाले दो दिलों के बीच एक दीवार खड़ी हो गई। एक तरफ खाई और दूसरी तरफ कुआ। बात हो रही है भारतीय टेनिस की शान सानिया मिर्जा और पाकिस्तान क्रिकेट के स्टार बल्लेबाज शोएब मलिक की।
प्यार किया नहीं जाता हो जाता है... यह गाना शोएब और आयशा पर अच्छा लगाता है। आयशा दुनिया से चिल्ला-चिल्ला बोल रही है कि शोएब उसका कथित पति है। उसने शोएब के साथ बीताए पलों को कैमरे में कैद किया है। आयशा की प्रेम कहानी इंटरनेट से शुरू हुई। मॉनीटर पर देखकर शोएब ने आयशा को पसंद किया। रात-रात भर चेटिंग के जरिए दोनों जवा दिलों की बात होने लगी। वह प्यार में इस कदर पागल हो गया कि वह आयशा के घर पहुंच गया और उसने उसके परिजन से रूबरू होकर बातचीत की। मगर, इंटरनेट पर दिखने वाली आयशा के दीदार उसे नहीं हुए और वह वापस लौट आया।
किसी ने खूब लिखा है। दो दिल मिल रहे हैं, मगर धीरे-धीरे। ऐसा ही हुआ शोएब और सानिया मिर्जा के बीच। दोनों का प्यार मीडिया की सुर्खियों में क्या आया? दोनों दुनिया कों मुंह चिड़ाने लगे। दुबई में होने वाली टेनिस और बल्ले की शादी पर ग्रहण लग गया। कौन रोकेगा, दो जबा दिलों को। मच रही है आत्मा और दिल बेकरार है। चलो जाने दो, विवादों के बीच शादी करने का अपना अलग मजा है। शादी के बाद मुददा यह भी उठेगा कि सानिया भारत के लिए खेलेगी या फिर पाकिस्तान के लिए। इसको लेकर खेल विभाग में खासी चर्चा है।
खुशी होती है तो बल्ले-बल्ले। मगर, पाकिस्तान के लिए तो यह बल्ले-बल्ले की नहीं। उनके लिए तो यह बल्ले और टेनिस की बात हो गई। उनकी खुशियां दौगुनी हो गई। पाकिस्तान की महिला वर्ग के लिए भी राहत भरी खबर है कि वह भी हर क्षेत्र में पर्दा के पीछे नहीं रहेंगी। उनका कद भी पुरूष सा हो जाएगा। हालांकि, इस मामले में विवाद भी हुआ और बयानबाजी भी। सानिया का बयान था कि मुझे और मेरे परिवार को सच्चाई पता है। इस बात की चिंता नहीं है कि आयशा शोएब पर क्या आरोप लगा रही है। इनका कहना का मतलब है कि मेहंदी लगाऊंगी मैं शोएब के नाम की। चाहे शोएब धोखेबाज हो, या फिर वह सानिया से दूसरी शादी कर रहा हो। इससे सानिया को कोई फर्क नहीं पड़ता। शोएब भी बिंदास होकर कहते हैं कि ठंडा मतलब सानिया का घर का पानी। दरअसल उस पर आयशा के आरोप का कोई असर नहीं पड़ा है। वह अदालत में लड़ने को तैयार है। उसे तो सानिया के घर के घाट का पानी पसंद है। कितना भी विवाद हो जाए। मगर तय है कि सानिया और शोएब का निकाह जरूर कबुल होगा। मामला दिलचस्प है। सब यहीं है, देखते हैं आगे होता क्या है?

Monday, March 22, 2010

बाबा नहीं, समाज पर कलंक है...

मनो राठौर
ढोंगी, पाखंडी, राजीव रंजन द्विवेदी उर्फ भीमानंद जी महाराज चित्रकूट वाले बाबा...। जो भी कहा जाए वह कम है। जितना बड़ा नाम है, उसे भी बड़ा कारनामा। दिल्ली समेत देश में वेबसाइड के जरिए गंदगी फैलाने वाला भीमानंद इस समय जनता की आंख की कीचड़ बन गया है। उसके प्रति लोगों का क्या नजरिया है। यह एक अंधा व्यक्ति भी सुनकर बता सकता है। बाबा की महिमा देखने वाली है। उनके गिरोह के लोग ग्राहक को अभिनेत्रियों की सप्लाई करने तक का दावा करता है। सोच पर थू-थू।
जिसकी गुलाब तोड़ने की औकात नहीं वे दलदल में लगे कमल तक कैसे पहुंच पाएगा। बॉलीवुड की चाह और नौकरी की तलाश में आने वाली लड़कियां गिरोह के निशाने पर रहती हैं। उनको जाल में फंसाकर देह व्यापार के दल-दल में झोंक दिया जाता है। अपनी इज्जत गबा चूकी। इन बेवस लड़कियों के लिए देह व्यापार ही हाईप्रोफाइल नौकरी है। कईयों ने परिवार को बता रखा है कि वे दिल्ली में एक प्राइवेट कंपनी में 25 हजार रुपए महीने की जॉब कर रही हैं। मगर, पर्दा के पीछे क्या है, किसी को नहीं पता। मेट्रो सिटी में नौकरी की चाह देह व्यापार के रास्ते तक जाती हैं। अकसर लोगों को फंसाने वाले रावण अंत में आकर राम की भेंट चढ़ जाते हैं। ऐसा ही बाबा भीमानंद के साथ हुआ। फाइव स्टार होटलों की गरिमा बढ़ाने वाला पाखंडी समाज के नाम पर कलंक है। उसने जमीर के साथ, अपना इमान भी बेच दिया। कहने वाले ने सही कहा है कि ऊपर वाला जब भी देता है, छप्पर फाड़ कर देता है। ऐसा ही ढोंगी बाबा के साथ हुआ। एक हाथ से धर्म के नाम पर, दूसरे हाथ से पाप के नाम पर करोड़ों कमाएं। करोड़ों का मालिक बनने के बाद भी बाबा जेल में पत्थर फोड़ रहा है। बाबा का रूप एक, लेकिन नाम अनेक हैं। साहब को शिवा उर्फ राजीव, उर्फ करण उर्फ शिव मूर्ति, उर्फ शिव रूप उर्फ स्वामी के नाम से जाना जाता है। बाबा की काली महिमा के बारे में कोई नहीं समझ पाया। उनके भजन कीर्तन में सभी राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेता शामिल हुए। देश की तमाम हिस्सों में प्रवचन के जलवे बिखरने वाले स्वामी जी के मंत्रियों ने भी चरण स्पर्श किए। यह सही है। दो नाकाब पोश एक दूसरे को कैसे पहचान पाएगें। एक सफेद कुर्ते वाला, तो दूसरा काली महिमा वाला। चलो जाने दो। जैसी करनी वैसी भरनी। जनता को तय करना है कि कौन बाबा है और कौन ढोंगी। ऐसे बाबा देश में ओर भी है, जो अश्लीलता और अवैधानिक गतिविधियों कों संचालित कर रहे हैं। उन्हें पहचान कर समाज के सामने नंगा करना होगा।

Sunday, February 14, 2010

किसको कहूं शिवसेना!

मनोज राठौर
शिव नाम की धून लोगों को नई ऊर्जा प्रदान करती है। लगता है कि ताकत दोगुनी हो गई। भगवान शंकर की बारात में शिव भक्त शामिल हुए थे। उनका आवरण कुछ भी हो, लेकिन आत्मा पवित्र थी। मुंबई में शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने सेना की छवि खराब कर दी। वह सत्य के साथ चल कर उसके साथ छल कर रहे हैं। धर्म के लिए लड़ना ठीक है। मगर, उसकी आड़ में हित को सिद्ध करने को क्या कहेगें। मौलिकता के सिद्धांत पर चलने के लिए कर्म को सार्थक बनाना पड़ता है। आज के युग में सबकुछ उलटापुलटा है। शिव सेना के नाम का सहारा लेकर काम रावण का हो रहा है। लोग चोला ओड़कर देश में आतंक मचा रहे हैं। हमें जानना है कि शिवजी की सेना क्या है। मुंबई की सेना को कौन सी सेना कहे, यह समझ से परे है। इसका उत्तर कठिन जरूर है, लेकिन लोगों समझ में आने लगा होगा। सब कुछ मालूम होने के बाद भी जनता अंधी बनी हुई है। भेड़ के पीछे चलना मजबूरी है या फितरत। इसका जबाव भीड़ में घुम रहे वह नागरिक ही दे सकते हैं, जो बिना सोचे-समझे उग्र रूप धारण करते हैं। हित किसी भी पक्ष का हो, लेकिन नुकसान देश का होता है।
मुंबई की शिवसेना अब रण सेना बन गई है। देश के हित के लिए रण में उतरना ठीक है। मगर, देश के विरोध में उतराने वाला देशद्रोही कहता है। आज जिन कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है वह देशद्रोही की श्रेणी में आते हैं। मुंबई की राजनीति सबके समझ में आती है। क्या हो रहा है, लक्ष्य क्या है, किसके लिए हो रहा है, किसके इसारे पर किया जा रहा है। सब जानते हैं, यह बात। फिर भी आंखों पर काली पट्टी बांधकर अंधे रास्ते पर चले जा रहे हैं। हम पढ़े-लिखे वर्ग से तालुक रखते हैं। समझदार के लिए इसारा काफी है। मुंबई नगरी रण में तबदील हो गई। बार-बार विरोध के तीर छोड़े जाते हैं। आखिर मकसद क्या है। कभी फिल्म, बयानबाजी और कई अनकही बातों को आधार बनाकर शिवसेना के कार्यकर्ता मारपीट, तोड़फोड और उग्र प्रदर्शन कर मीडिया में जरूर आते हैं। यह दिखाना और प्रकाशित करना प्रतिस्पर्धा के युग में मजबूरी है। मगर, आत्मा खरीदने की औकात किसी की नहीं। कवरेज के साथ मीडिया लोगों को सच से अवगत भी कराती है। यह सब यूं ही चलता रहेगा। मगर, फैसला किसे करना है। उसे नहीं पता। वह अनभिज्ञ है। राजनीति करो, हितों को दूर रखकर। मुंबई में बिलकुल उलटा हो रहा है। जीतना-हारना लगा रहता है। सत्य के लिए हार भी स्वीकार है। किसी शायर ने कहा कि हमारी फितरत में नहीं है हारना, मगर कमबख्त मजबूरी बन गई है। जीतो और देश को दिखाओं के हम शिवसैनिक है, हम भारतीय है, हम देशप्रेमी है, हम देश हितेषी हैं। सब बताओं, लेकिन ऐसा काम नहीं करो जिससे देश की शांति भंग होती है। बात-बात में सेना की छवि खराब करना। यह किसके हित में है। शिवसेना का वर्जस्व सर्वाेपरी है। उसे कायम रखना कार्यकर्ता का दायित्व है। देश हित के लिए मर जाना भी कम है। सिद्धांतों का पालन करना ही शिवसेना कार्यकर्ता का दायित्व है। राजनीतिक गलियारों से होकर गुजरना, लेकिन वहां दुकानदारी नहीं करना। कहने का मकसद है कि राजनीति भी करो, लेकिन देश के हित में।
मौसम आ गया है देश पर मरने का
ऊर्जा
देने वाला महरवान है तुझ पर

...उसे फिजूल खर्च मत करना।

Thursday, February 11, 2010

विदेश में सुरक्षित नहीं है बिटिया

मनोज राठौर
विदेश में रहने वाली भारतीय बिटिया की सुरक्षा के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा राष्ट्रीय महिला आयोग की पहल अच्छी है। एनआरआई (अप्रवासी भारतीय) सेल के माध्यम से विदेशी पतियों की काली करतूत सामने आएगी। हालांकि, व्याप इंतजाम करने के बाद भी प्रताड़ना की शिकायत आना बं नहीं हुई। विदेशी कभी अपनी हरकत नहीं छोड़ते। हम भरोसा कर हर बार धोखा खाते है। चाहे वह पाकिस्तान या चीन का मामला हो। सबकुछ साफ-साफ नजर आता है। इसके बाद भी सबकुछ हजम कर लिया जाता है।
एनआरआई पतियों के जुल्मों की शिकार महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा गठित की गई सेल का काम विवाह के बाद एनआरआई पतियों द्वारा छोड़ दी गई, उनके जुल्म या धोखाधड़ी की शिकार महिलाओं की मदद करना है। शिकायत प्राप्त होने पर आयोग उनकी सहायता करेगा। 27 अगस्त 2009 को एनआरआई सेल ने अपना काम करना शुरू किया। छह माह की अवधी में सेल के पास वैवाहिक अनबन जैसी 177 शिकायतें आ चुकी हैं यानी औसतन रोजाना एक शिकायत। सबसे अधिक शिकायत 130 अमेरिका, 44 बिट्रेन और 37 कनाडा की है। यह सेल का आंकड़ा है। मगर वास्तविक स्थिति कुछ ओर ही है। हर मामले की शिकायत सेल में आए, यह संभव नहीं है। जागरूकता और भय के कारण महिलाएं शिकायत करने से कतराती हैं। आयोग का तर्क है कि शादी की स्थिति में विवाह का पंजीकरण और दो पासपोर्ट महिला को न्याय दिलाने में मददगार साबित होगा। यह महिलाओं के लिए जीवन का सबसे दुखद पहलू होगा, जिसमें न्याय मिलना भी बेकार होता है। विधेयक की मांग में वैवाहिक अनबन, पत्नियों के लिए गुजारा भत्ता, बच्चों की अभिरक्षा, वैवाहिक संपत्ति के निपटारे पर कानून शामिल है। यह विधेयक विदेशी अदालतों के लिए एनआरआई व भारतीय नागरिकों के बीच मुकदमों के निपटारे में मदद करेगा। अभी तक विधेयक पारित नहीं हुआ। मतलब साफ है कि आयोग के चिंतन करने मात्र से समस्या का हल नहीं निकल जाता। सरकार भी सामने आए और जल्द ही गहरी नींद से जाग जाए। विदेशों में अधिकांश एनआरआई पति पत्नी को छोड़कर भाग जाते हैं। उनके इंतजार में महिलाओं की आंख का पानी सूख जाता है, लेकिन जाने वाला नहीं आता। वह दूसरी नांव में सवार होकर समुद्र की लहरों का मजा लेता है। समझना हमारी जिम्मेदारी है और समझना उनकी जबावदारी है। यह तर्क नहीं, सच है। बात को समझना ही समझदारी है।

Monday, February 08, 2010

बयानबाजी बनी ताकत

मनोज राठौर
झू किसी सही काम के लिए बोला जाए तो उसे माफी मिल जाती है। मगर भारत की बिड़वना है कि राजनीतिक दल अपने हित के लिए झूठ बोलते हैं। उन्हें न जनता से मतलब और न ही देश से। बयान से लोगों का दिल जीतने वाले नेता हमेशा छल करते हैं। धर्म, समाज, भाईचारा, एकता, आतंकवाद, नकस्लवाद या फिर विभिन्न विषयों पर बोलने पर नेताओं को महारथ हासिल है। मंच पर आने के बाद उनकी स्थिति कुछ ऐसी हो जाती है, जैसे शंक में हवा मारी और बज पड़ा।
हम सभी लोगों को पता है कि पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन लश्कर एवं हिजबुल भारत में घुसपैठ की फिराक में रहता है, लेकिन सुरक्षा का कवज बन बैठे नेताओं का एक ही जबाव होता है। वह कहते हैं कि भारत में आतंकवादी हमले करने में लश्कर-ए-तय्यबा, हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी संगठनों का हाथ है, जो कश्मीर के रास्ते हिन्दुस्तान में प्रवेश कर रहे हैं। उन्हें मौका मिला और चालू हो गए। वह लोगों को बताना चाहते हैं कि आतंवादी संगठन साजिश रच रहा है। हम भी चुप नहीं। पूरी तैयारी कर ली है। आने दो उन्हें देख लेगें। हर बार एजेंसी ने सरकार को चेताया है। उन्हें सुरक्षा के व्यापक इंतजाम करने के संकेत दिए। हिम्मत देखो, इस पर जिम्मेदार नेताजी पलड़ा नहीं छाड़ते। वह शान से बयानबाजी कर लोगों को भ्रमित करते हैं। उनके पास वोटर बढ़ाने का इससे बड़ा मौका नहीं होता। मंच पर पहुंचकर ऐसे शुरू हो जाते हैं कि मानों कोई पुराना गाना लगा दिया हो। मीडिया की वाइट में भी निष्कर्ष निकलकर सामने आता है कि आतंकवादी मामले में सख्ती से निपटने की तैयारी कर ली है, जल्द ही देश से आतंकवाद को सामाप्त किया जाएगा। आज के लोग समझदार है, उन्हें पता की नेताओं के भाषण में अपना समय खराब करना है। वह भाषण सुनने के लिए रूकते तक नहीं। दूसरी ओर ऐसे कथित नेताओं के भाषणबाजी में भाड़े की जनता एकत्रित की जाती है। प्रत्येक चुनाव, बड़े-बड़े समारोह में अकसद गांव से लोगों को लाया जाता है। कार्यकर्ता खाने से पीने तक की व्यवस्था करते हैं। अब हमे समझना है कि आखिर कोई चाहता क्या है? कह सकते हैं, हम अंधे नहीं। हमारी दो आखं और कान है। सब सुनते है। बंद करो बयानबाजी। सही मार्ग पर चले, तो ताकत हम देगें।

Thursday, February 04, 2010

बेटा सबकुछ, बेटी बोझ

मनोज राठौर
आज
के युग में लोगों के लिए बेटा ही सबकुछ है। बेटी उसेबोझ लगती है। अब आधुनिकता के कारण पता चल जाता है कि गर्भ में पलने वाला भू्रण लड़का है या फिर लड़की। यदि बेटा होता है तो परिजन खुशी का ठिकाना नहीं रहता। वह मोहल्ले में हजारों रुपए की मिठाई बांट देते हैं। मगर, हमारे देश की बिड़वना है कि बेटी होने पर उसकी गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है। उसके परिजन बोझ समझता है। उस समय किसी को पता नहीं रहता है कि जिस की हत्या की जा रही है वह बुढ़ापे में उसकी लाठी होगी।
जीवनभर
की खून पसीने की कमाई से बेटे का पालन-पोषण किया जाता है। भले ही बाद वह बुढ़ापे में सहारा नहीं बने। देश का कानून सख्त हुआ और उसने भू्रण की हत्या करने वाले पर सजा की मंशा बनाई। मगर, कहते है कि कोई कितना भी पहरा लगाए, लेकिन हरकत करने वाला कभी नहीं चुकता। आज संस्कार और सामाजिकता को निखाने वाली बेटियां ही कम हो रही हैं। उनके प्रति समाज सचेत तो है, लेकिन जागरूक नहीं। इसका परिणाम क्या होगा? इसका जबाव आने वाली पीढ़ी से मिल सकता है, जो धरा पर आने से भी डर रही है।
खुशी की बात है कि आने वाले समय में महिलाओं के प्रति अपराध कम हो जाएगें, लेकिन अपराध से बड़ा अपराध लोगों के सामने आएगा। शादी के लिए लोगों के बीच खून-खराबा होगा। ऐसे में मुझें नहीं लगता है कि अपराध पर अंकुश लगेगा। 25 वर्ष पूर्व ही सामाजिक विशेषज्ञों ने कहा था कि जिस दहेज समस्या से पीड़ित होकर समाज कन्या भु्रण हत्याएं कर रहा है। वह उसके लिए अंतिम हल नहीं है। बल्कि, इससे आने वाले युग में जो अपराध होंगे वह अधिक भयानक होगें, जिसकी कल्पना करने से भी रूह कापती है। अभी लड़कियां पर्याप्त है, इसलिए लड़के इधर-उधर नजरें मारकर काम चलाते हैं। कहने का तात्पर्य है कि जब उनकी संख्या कम होगी, तो उनके इर्द-गिर्द सैकड़ों लड़के नजर आएगें। रास्तों में भीड़ रहेगी, सड़कों पर जाम लग जाएगा। कुछ ऐसी निर्मित होगी कि कोई महिला राष्ट्रपति निकलने वाली हो। दहेज देने की उलटी रस्म शुरू होगी और वर पक्ष नाक रगड़ते हुए लड़की का हाथ मांगने पहुंचेगा। फिर कहा जाएगा कि तू इंतजार कर, अभी तेरा नंबर लाइन में है। लड़की सही समय पर मिल गई तो ठीक है वरना अंतिम समय तक कुंवारा रहना पड़ेगा। लड़कियां नहीं होने से एक दिन ऐसा संकट आयेगा, जिससे कोई वर्ग अछूता नहीं रहेगा। इसके बाद नारीवादी लेखक भी मांग और पूर्ति के सिंद्धातों पर विचारधीन होगा। पुरूष अधिक होंगे तो उनकी मांग कम और स्त्री संख्या में कम है तो उनकी मांग अधिक होगी। देश में मांग बढ़ जाएगी और उसकी पूर्ति कम होने पर क्या स्थिति निर्मित होगी? इसका तो भगवान ही मालिक है। कन्या भु्रण हत्याओं के बारे में विशेषज्ञों की चेतावानी को अनदेखा करते हुए जिस तरह समाज आगे बढ़ रहा है, उसका परिणाम दुध का दुध और पानी का पानी है।