नमस्कार साथियों,
मंजिल को भूलकर, रास्तों पर ध्यान दिया।
अब मिल गई है मंजिल, रास्तों के कारण।
हमेशा मैंने रास्तों पर ध्यान दिया है। इसके चलते आज दूर ही सही, लेकिन मंजिल नजर आ रही है। विचारों को व्यक्त करने के लिए ब्लाग को माध्यम बनाया है। आज मेरा पारखी नजर नाम से एक ब्लाग चल रहा है। इसी ब्लाग में अगली कड़ी जोड़ते हुए मैंने अपराध की दुनिया नाम से ब्लाग प्रारंभ किया। मुझे पूरा विश्वास है कि सभी वर्ग के लोगों को मेरा ब्लाग पसंद आएगा। इसमें अपराध से संबंधित पठनीय सामाग्री दी जाएगी। मैं चाहता हूं कि इस ब्लाग के संबंध में सभी लोग अपनी राय व्यक्त करे। भारत में कार्यरत पत्रकारगण जो क्राइम के क्षेत्र में लिखने की रूचि रखते हैं उनकी रचना मेरे ब्लाग पर आमंत्रित हैं। पुलिस विभाग का अपराध से नजदीकी नाता रहा है, जिसके चलते कई बार लोग उसकी भूमिका पर संदेह करते हैं। ब्लाग में पुलिस विभाग शामिल रहेगा। मुझे विश्वास है कि मेरा ब्लाग पूरे संसार में लोकप्रिय होगा। इसमें आप सभी लोगों की सहयोग की अपेक्षा रहेगी...
प्रारंमिक दौर में विधानों के नैतिक, धार्मिक तथा सामाजिक नियमों को तोड़ना अपराध था। सारजेंट सटीफन ने लिखा है कि समुदाय का बहुमत जिसे सही बात समझे, उसके विपरीत काम करना अपराध है। आज के दौर में अपराध का रूप और प्रकार भी बदल गया है। नए किस्म के अपराधों ने जन्म ले लिया है, जो कल्पना से परे हैं। इसलिए अपराध की पहचान के बारे में कहा जाता है कि जिसे कानूनन मान लिया गया हो, वही अपराध की श्रेणी में आ जाता है।
Monday, November 16, 2009
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